90 दिन में चार्जशीट दाखिल न होना जमानत का आधार : हाईकोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि किसी अपराध में पुलिस आरोपी के खिलाफ निर्धारित समयावधि 90 दिन के भीतर आरोपपत्र दाखिल नहीं कर पाती है तो अभियुक्त को जमानत पाने का स्वत: अधिकार मिल जाता है। ऐसी स्थिति में कानून में मिले अधिकार को देने से इंकार नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने गोरखपुर के हरपुर बुदहट थाने में दर्ज हत्या और साक्ष्य मिटाने की प्राथमिकी में आरोपी अभियुक्तों को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया है। 
हत्यारोपी हरेंद्र, रामू और राजेश की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने दिया। याचीगण का कहना था कि उनके खिलाफ चार फरवरी 2020 को प्राथमिकी दर्ज कराई गई और पुलिस ने पांच फरवरी को उनको गिरफ्तार कर लिया। उसी दिन सीजेएम ने अभियुक्तगण को   पुलिस रिमांड पर दे दिया। याचीगण ने 90 दिन का समय पूरा होने के बाद 13 मई को जमानत प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किया।
सीआरपीसी की धारा 167(2) का आधार लेकर कहा गया कि 90 दिन में चार्जशीट नहीं दाखिल होने पर अभियुक्त को जमानत पाने का स्वत: अधिकार मिल जाता है। मगर याचीगण का जमानत प्रार्थनापत्र अभियोजन की इस दलील के आधार पर खारिज कर दिया गया कि चार्जशीट आठ मई को ही फारवर्ड कर दी गई थी। इसलिए याचीगण स्वत: जमानत पाने का अधिकार खो चुके हैं। 
इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में 482 सीआरपीसी के तहत प्रार्थनापत्र दाखिल किया गया। कहा गया कि जबतक चार्जशीट कोर्ट में दाखिल नहीं हो जाती है तब तक यह नहीं माना जा सकता है कि पुलिस ने 90 दिन में चार्जशीट दाखिल कर दी। सर्वोच्च न्यायालय ने यूनियन ऑफ इंडिया थ्रू सीबीआई वर्सेज राजाराम यादव केस में इस तथ्य पर विस्तार से विचार कर निर्णय दिया है कि 90 दिन में चार्जशीट कोर्ट में दाखिल नहीं होने पर अभियुक्त को 167(2) सीआरपीसी के तहत जमानत प्राप्त करने का अधिकार है।
इस अधिकार को छीना नहीं जा सकता है। अभियोजन ने समय सीमा बढ़ाने का कोई प्रार्थनापत्र भी नहीं दिया है तो जमानत स्वत: मिलनी चाहिए। हाईकोर्ट ने प्रार्थनापत्र मंजूर करते हुए कहा कि चार्जशीट डिस्पैच करने से यह नहीं माना जाएगा कि चार्जशीट दाखिल हो गई है। जमानत प्रार्थनापत्र दाखिल करने की तिथि 13 मई तक चार्जशीट कोर्ट में दाखिल नहीं थी, इसलिए याचीगण जमानत पाने के हकदार हैं।


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