समस्त भारतीय चिंतन का सार है नाथ पंथ


समस्त भारतीय चिंतन का सार है नाथ पंथ 


दिनाँक 12, जनवरी 2021: गोरखपुर महोत्सव के अंतर्गत 'नाथ पंथ एवं लोक सरोकार' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कन्हैया सिंह, पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष,उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान,  विशिष्ट वक्ता के रूप में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय नई दिल्ली के संस्कृत एवं प्राच्य विद्या अध्ययन संस्थान के संकाय प्रमुख प्रो. संतोष शुक्ला, गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ मुरली मनोहर पाठक एवं गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. राजवंत राव की उपस्थिति हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध उपन्यासकार एवं आलोचक एवं गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. रामदेव शुक्ल ने की।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. रामदेव शुक्ल ने कहा समाज में व्याप्त हर तरह की कुरीतियों को गुरु गोरखनाथ जड़ से समाप्त कर देते हैं। उन्होंने समाज मे व्याप्त भेदभाव को दूर करने का प्रयास किया और जीव मात्र को एक मानने का उपदेश दिया। गुरु गोरखनाथ अपरिग्रह पर बड़ा जोर देते थे। आज उनकी वाणी के अनुकरण का सबसे अनुकूल समय है। परिग्रह की प्रवृत्ति के कारण ही आज लोग तमाम गलत तरीके से धन संग्रह में लगे रहते हैं। आगे उन्होंने का कि योग शब्द हिंदुस्तान की पहचान है। विपरीत के बीच एक प्रकार का व्यवहार करना ही योग है। 

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कन्हैया सिंह , पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष,उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान ने कहा कि कि गुरु गोरखनाथ ने साधना के मार्ग को ठीक किया। एक समयकाल में आई तमाम अनुष्ठानिक कुरीतियों को दूर करने के लिए साधना के केंद्रों की पवित्रता और ब्रह्मचर्य के महत्व को स्थापित किया। 

विशिष्ट वक्ता गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राजवंत राव ने महायोगी गोरखनाथ जी द्वारा दिये संदेशों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत में अनेक सांस्कृतिक एवं धार्मिक परम्पराएं विद्यमान रही है, सभी की पृथक-पृथक मान्यताएं एवं व्यवहार रहा है किंतु भारत की सभी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का आत्मसात रूप है नाथ पंथ। नाथ पंथ में भारत की तमाम परम्पराएं आत्मसात हुई हैं। वस्तुतः भारत की संस्कृति द्विविभाजित रही है।  अनेकानेक विपरीत विचार प्रवाहित होते रहे और सभी में एक साम्य है। भारत की सांस्कृतिक परंपरा में नाथ पंथ का विशेष स्थान है। गुरु गोरखनाथ जी के विचार से जीवन में अनेक प्रेरणा मिलती है। वह संसार के समानांतर एक प्रति-सत्ता रचना रचते हैं। नाथपंथियों का लोक चित्त में गोरखनाथ की अद्भुद पैठ है। 

विशिष्ट वक्ता जेनएयू के संस्कृत संकाय के अध्यक्ष प्रो. संतोष शुक्ला ने कहा कि लोक साहित्य में महायोगी गुरु गोरखनाथ का प्रमुख स्थान हैं। लोक साहित्य में गुरु गोरखनाथ की सर्वत्र चर्चा है। हिंदी साहित्य में कोई कवि या लेख ऐसा नहीं था, जिसे महायोगी गुरु गोरखनाथ को याद न किया हों। भारत मे व्याप्त अनेक मत-मतान्तरों के कारण अनेकों सामाजिक कुविचार पैदा हो गए, जिसके बाद योगमार्ग का प्रवर्तन गुरु गोरखनाथ ने किया। 

विशिष्ट वक़्त प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने योग और योगी के आशय को स्पष्ट किया और कहा कि समस्त भारतीय चिंतन का सार है नाथ पंथ। गुरु गोरखनाथ ने पूरे भारतीय चिंतन को निचोड़कर नवनीत के रूप में प्रस्तुत किया। गुरु गोरखनाथ ने ज्ञान में शास्त्र के आडंबर को दूर करके लोक जीवन में जीकर अपना दर्शन दिया, इसलिए यह चिरस्थायी है। गुरु की महिमा पर नाथपंथ विशेष बल देता है। गुरु की महिमा से ही जीवन बदल सकता है। 

कार्यक्रम में विषय प्रवर्तन एवं अतिथियों का स्वागत कार्यक्रम के संयोजक प्रो. अजय कुमार शुक्ला ने किया और कहा कि नाथ पंथ का लोक पर व्यापक प्रभाव है। वर्तमान समय में इसकी महत्ता और प्रासंगिकता है। प्रो. शुक्ला ने कहा कि पहली बार महोत्सव में सेमिनार का आयोजन कर अनूठा प्रयास किया गया है। 

कार्यक्रम का संचालन मुमताज खान और आभार ज्ञापन समाजशास्त्र विभाग के डॉ. मनीष पाण्डेय ने किया। 



इस दौरान डॉ अखिल मिश्र, डॉ हर्षदेव वर्मा, डॉ राकेश प्रताप सिंह, डॉ प्रकाश प्रियदर्शी, डॉ लक्ष्मी मिश्रा, डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी, डॉ कुलदीपक, डॉ मृणालिनी, डॉ कुसुम, डॉ कुलदीप द्विवेदी, डॉ विवेकानंद शुक्ला, डॉ मनोज कुमार सिंह, डॉ रत्नेश त्रिपाठी झुम्पा मंडल, अश्वनी त्रिपाठी, अजय तिवारी, सुप्रिया, स्वेता पटेल, मंतोष यादव समेत शहर के अनेक गणमान्य जन उपस्थित थे।

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