असुरन पोखरा को लेकर मामला गरमाया, अब जीडीए, नगर निगम और राजस्व कर्मियों की भी तय होगी जवाबदेही

डॉ0 एस0 चंद्रा

        गोरखपुर : सुमेर सागर ताल की ही तरह असुरन पोखरे को भी पाटकर कॉलोनी बसा दी गई। अब मामले में राजस्व विभाग, जीडीए और नगर निगम के जिम्मेदार कटघरे में खड़े हैं। सवाल है कि यदि कॉलोनी की जमीन राजस्व अभिलेखों में जलाशय के नाम से दर्ज है तो तमाम लोगों के खारिज-दाखिल की भी प्रक्रिया कैसे पूरी हो गई।

जीडीए ने मौके पर कई मकानों के मानचित्र स्वीकृत कर दिए तो नगर निगम ने वहां सड़क, नाली बनवाई। ये प्रश्न गवाही दे रहे हैं कि ताल की जमीन बेचने वाले और वहां मकान बनवाने वाले गलत हैं तो इन विभागों के जिम्मेदार भी बराबर दोषी हैं।  

ज्वाइंट मजिस्ट्रेट व एसडीएम सदर गौरव सिंह सोगरवाल भी यह मानते हैं कि बिना इन विभागों के तत्कालीन अफसरों, कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना पोखरे की जमीन पर कब्जा नहीं हो सकता था। यही वजह है कि उन्होंने कमिश्नर को पत्र लिखकर इस मामले में जीडीए और नगर निगम के तत्कालीन अफसरों, कर्मचारियों की जवाबदेही तय करते हुए उनपर कार्रवाई की अपील की है।

इसी तरह संबंधित राजस्व कर्मियों के बारे में भी उन्होंने डीएम को भी पत्र लिखा है। तहसील के कर्मियों की संलिप्तता वह खुद जांचेंगे। उधर, कॉलोनी बसाने वाले को ताल की कब्जा हो चुकी जमीन के बराबर किसी दूसरी जगह जमीन देने के लिए 29 जनवरी तक की मोहलत दी गई है। इसके बाद तहसील प्रशासन कार्रवाई शुरू करेगा।

शहर में ताल एवं पोखरे की जमीन से कब्जा हटाने की कार्यवाही के दौरान कुछ दिन पहले तहसील की टीम ने असुरन पोखरे की भी पैमाइश की थी। पता चला कि पोखरे के 9.5 एकड़ क्षेत्रफल में से करीब पांच एकड़ पर मकान बन चुके हैं। मकान बनाने वाले लोगों को नोटिस देने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

इसकी जानकारी होने पर कॉलोनी के लोग जमीन बेचने वाले परिवार के सदस्यों के साथ 18 जनवरी 2021 को ज्वाइंट मजिस्ट्रेट से भी मिले थे। उन्होंने बताया कि सभी ने जमीन रजिस्ट्री कराई है। खारिज-दाखिल है और जीडीए से मानचित्र भी स्वीकृत है। बिजली का बिल, गृह कर और जलकर भी भरते हैं। यही नहीं, उन्होंने कहा कि जब उन्होंने जमीन रजिस्ट्री कराई थी तो राजस्व अभिलेखों पर कास्तकार का नाम दर्ज था न कि जलाशय।

2010 में भी गरमाया था मामला, जमीन देने की शर्त पर शांत हुआ

असुरन पोखरे की जमीन पर भेड़ियागढ़ कॉलोनी बसाने वालों की एक वादाखिलाफी ने सैकड़ों कॉलोनी वालों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। प्रशासन अब उनकी इमारतों पर बुलडोजर चलाने की तैयारी कर रहा है। यह मामला ठीक एक दशक पहले 2010-11 में भी गरमा चुका है।

तत्कालीन कमिश्नर पीके महांति ने पोखरे की जमीन पर कब्जा करने वालों को हटाने के साथ ही जीडीए और नगर निगम को दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया था। उसी समय कॉलोनी वालों के दबाव पर जमीन बेचने वाले ने पोखरे की कब्जा की हुई करीब 3.50 एकड़ जमीन के बराबर दूसरी जगह जमीन देने का वादा किया था।

कमिश्नर के निर्देश पर तत्कालीन एडीएम सिटी की अध्यक्षता में बनी एक कमेटी को जमीन बेचने वाले ने लिखित में वादा किया था कि वह एक महीने के भीतर जमीन उपलब्ध करा देंगे। मगर कमिश्नर पीके महांति के कानपुर तबादले के साथ ही यह मामला भी दब गया। जमीन बेचने वाले ने जमीन भी नहीं दी। अब ज्वाइंट मजिस्ट्रेट ने एक दशक पूर्व किया गया वादा पूरा करने के लिए उन्हें फिर से 29 जनवरी तक का मौका दिया है।

हालांकि ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के मुताबिक मौके पर अब करीब सात एकड़ पोखरे की जमीन पर कब्जा है। प्रशासन के मुताबिक  ऋषभ जैन ने पोखरे की जमीन बेची है।

ताल सुमेर सागर: लोगों के घर गिर गए, असल जिम्मेदार काट रहे मौज

ताल सुमेर सागर पर कब्जे के मामले में प्रशासन ने आम लोगों के घर तो जमींदोज कर दिए मगर जमीन बेचने वाले मुख्य आरोपी, जमीन रजिस्ट्री करने वाले, खारिज-दाखिल करने वाले तहसील के तत्कालीन तहसीलदार, रिपोर्ट लगाने वाले लेखपाल-कानूनगो, मौके पर दो-तीन मकानों का मानचित्र स्वीकृत करने वाले जीडीए के अफसरों-कर्मचारियों पर अभी तक कार्रवाई नहीं हुई।

यही नहीं, 60 लाख रुपये से अधिक कीमत से सुमेर सागर ताल की जमीन पर सड़क बनाने वाले नगर निगम के अफसरों-कर्मचारियों पर भी अभी तक कोई शिकंजा नहीं कसा गया। यानी पूरे मामले में असल जिम्मेदार मौज काट रहे और आम आदमी पिस गया। तहसील प्रशासन सुमेर सागर ताल की करीब 11 एकड़ जमीन खाली कराने का दावा करता है।

साथ ही मुक्त कराई गई जमीन और पहले से खाली बची जमीन को फिर से ताल का स्वरूप देने का काम चल रहा है। वहीं कुछ लोगों के निर्माण से जुड़ा मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। इस मामले में ज्वाइंट मजिस्ट्रेट/एसडीएम सदर गौरव सिंह सोगरवाल का कहना है कि सुमेर सागर के मामले में जिन सात राजस्व कर्मियों की जवाबदेही तय की गई थी। उनमें से तीन मर गए हैं।

बाकी बचे चार में से तीन सेवानिवृत्त हो चुके हैं और एक सिद्धार्थनगर में तैनात हैं। तीनों सेवानिवृत्त कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए शासन को पत्र लिखा गया है। इसी तरह कमिश्नर ने जीडीए और नगर निगम को भी कार्रवाई के लिए कहा था। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट ने कहा कि वह पता लगाएंगे कि वहां कार्रवाई कहां तक आगे बढ़ी।

ज्वाइंट मजिस्ट्रेट/एसडीएम सदर गौरव सिंह सोगरवाल ने कहा कि असुरन पोखरे की जमीन बेचने वाले ऋषभ जैन को 2010 में हुए समझौते के मुताबिक कब्जा की गई जमीन के बराबर दूसरी जगह जमीन उपलब्ध कराने के लिए 29 जनवरी तक का मौका दिया गया है। इसके बाद कार्रवाई की जाएगी। वहीं इस मामले में जीडीए और नगर निगम के दोषी अफसरों, कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय करते हुए उनपर भी कार्रवाई के लिए कमिश्नर को पत्र लिखा गया है। खारिज-दाखिल करने वाले कर्मचारियों को भी चिह्नित कर कार्रवाई की जाएगी।

लगभग 100 करोड़ है जमीन की कीमत: ज्वाइंट मजिस्ट्रेट

ज्वाइंट मजिस्ट्रेट व एसडीएम सदर गौरव सिंह सोगरवाल का कहना है कि असुरन पोखरे की जमीन कब्जा कर जहां निर्माण करा लिया गया है, वर्तमान सर्किल रेट के हिसाब से उस जमीन की कीमत 100 करोड़ रुपये के आसपास है।

उन्होंने बताया कि तत्कालीन कमिश्नर पीके महांति द्वारा गठित कमेटी ने पोखरे की जमीन बेचने वाले ऋषभ जैन को उस समय कब्जा हो चुकी 3.50 एकड़ जमीन खाली करने या जमीन की सर्किल रेट के मुताबिक कीमत जमा करने या फिर उतनी ही जमीन उपलब्ध कराने की शर्त रखी थी।

इसपर 13 मई 2010 को ऋषभ जैन ने शपथ पत्र देकर कहा था कि वह एक महीने के भीतर कहीं दूसरी जगह 3.50 एकड़ जमीन दे देंगे। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। अब जमीन उपलब्ध कराने के लिए उन्हें 29 जनवरी तक का समय दिया गया है।

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