डॉ0 एस0 चंद्रा
गोरखपुर : नगर निगम की जमीन को अपना बताकर उसकी रजिस्ट्री करने का मामला सामने आया है। पीड़ित को जालसाजी की जानकारी तब हुई जब नगर निगम ने जमीन को अपना बताते हुए पक्के घर को ध्वस्त कर दिया।
इसकी शिकायत करने पर आरोपी ने धमकी भी दी। अब पीड़ित ने कैंट थाने में तहरीर दी है जिसके आधार पर पुलिस ने विशुनदेव शाही और उनकी पत्नी सीमा शाही के खिलाफ अमानत में खयानत और धमकी देने की धाराओं में केस दर्ज कर लिया।
जानकारी के मुताबिक, गगहा इलाके के रियांव निवासी अनिल कुमार शाही ने 30 जुलाई 2014 को महादेव झारखंडी टुकड़ा नंबर दो में पूर्व परिचित प्रॉपर्टी डीलर विशुनदेव शाही से और उनके सहयोगी विक्रम लाल से 3052 वर्ग फुट जमीन 22 लाख रुपये में अपनी पत्नी मधुबाला शाही के नाम से बैनामा कराई। इसके बाद तीन कमरे के मकान का निर्माण भी करा लिया। 20 जून 2020 को जिला प्रशासन और नगर निगम ने उक्त जमीन को निगम की बताकर उनका मकान ध्वस्त करा दिया।
आरोप है कि इस धोखाधड़ी की जानकारी होने पर पीड़ित अनिल कुमार शाही ने विशुनदेव से 22 लाख रुपये वापस करने या दूसरी जमीन का बैनामा करने को कहा तो विशुनदेव कुछ दिन तक टालते रहे। बाद में रुपये वापस करने से मना करते हुए अपशब्द कहते हुए जान से मारने की धमकी दी। अनिल शाही ने पुलिस अधिकारियों को तहरीर दी तब पुलिस ने धोखाधड़ी का केस दर्ज किया था लेकिन फिर एक बार वह विशुनदेव की बातों में आ गए।
पहले दर्ज हुआ था धोखाधड़ी का केस
विशुनदेव शाही ने लगभग एक साल बाद महादेव झारखंडी टुकड़ा नंबर एक में 1961 वर्ग फीट का दूसरा प्लाट दिखाया। इसके लिए अनिल शाही ने अपनी पत्नी व पुत्र के खाते से और साढ़े तेरह लाख रुपये प्रापर्टी डीलर विशुनदेव शाही व उनकी पत्नी संध्या शाही के खाते में ट्रांसफर कर दिए। इस प्लाट का बैनामा करने के लिए कहने पर विशुनदेव टालता रहा और बाद में मना कर दिया। पैसा वापस मांगने पर जान से मारने की धमकी दी गई। इस पर अनिल शाही ने डीआईजी/एसएसपी को तहरीर दी जिस पर थाना कैंट पुलिस ने पांच जनवरी को मुकदमा दर्ज किया।
इस मामले में पीड़ित की तहरीर पर सितंबर में जालसाजी, कूटरचित दस्तावेज तैयार करने सहित अन्य धाराओं में केस दर्ज किया गया था लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं हुई और चार्जशीट कोर्ट में भेज दी गई। यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है।
विशुनदेव शाही ने बताया कि अनिल शाही मेरे रिश्तेदार हैं। उन्होंने जमीन खरीदने की इच्छा जताई थी। रुपयों की जरूरत होने की वजह से मैं जमीन बेचने को तैयार हो गया। पड़ोस में दूसरी जमीन थी जिसे संयुक्त रूप से रजिस्ट्री का पैसा बचाने के लिए उन्होंने बैनामा कराया। जन सूचना के तहत मुझे जानकारी मिल गई है मेरी जमीन नगर निगम की या सरकारी नहीं है। उस समय अनिल शाही ने रुपये नहीं दिए और बाद में जमीन का पैसा दिया, जिसपर दूसरा मुकदमा उन्होंने पांच जनवरी को दर्ज कराया है। मेरे साथ खुद ही विश्वासघात हुआ है
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