12 से 25 जुलाई तक दस्तक अभियान के दौरान आशा ढूढेंगी बुखार के रोगी

गोरखपुर, जिले में प्रस्तावित दस्तक अभियान के दौरान कालाजार के रोगी भी चिन्हित किये जाएंगे। मलेरिया एवं वेक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के नोडल अधिकारी व अपर निदेशक डॉ. बिंदु प्रकाश सिंह के दिशा-निर्देश पर इस संबंध में मंगलवार को राज्य स्तरीय वर्चुअल प्रशिक्षण कार्यशाला हुई- जिसमें उन्होंने बीमारी और दिशा-निर्देशों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन और पाथ संस्था के तकनीकी सहयोग से हुई कार्यशाला में बताया गया कि दो हफ्ते से ज्यादा बुखार वाले कालाजार के संभावित मरीजों की जांच अवश्य कराई जाए। जिले में 12 से 25 जुलाई तक प्रस्तावित दस्तक अभियान के दौरान आशा कार्यकर्ता को बुखार के रोगी को ही चिन्हित करना है। विषय विशेषज्ञ तनुज शर्मा ने आशा कार्यकर्ताओं के लिए तकनीकी फार्मेट्स के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

गोरखपुर के जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. एके पांडेय ने बताया कार्यशाला में जिला स्तरीय टीम ने प्रतिभाग किया। उन्होंने बताया अभी तक दस्तक कार्यक्रम के दौरान सिर्फ कोविड, जेई-एईएस, टीबी रोगियों और कुपोषित बच्चों को चिन्हित करने का दिशा-निर्देश था। अब तय हुआ है कि कालाजार के दृष्टीकोण से संवेदनशील जिलों में इसके मरीजों को भी चिन्हित किया जाए। यद्यपि गोरखपुर जिला इस दृष्टी से ज्यादा संवेदनशील नहीं है लेकिन पड़ोसी जिलों में कालाजार के मामलों को देखते हुए और जिले में भी कुछेक केसेज के सामने आने के कारण यहां विशेष सतर्कता रखी जा रही है।

उन्होंने बताया कालाजार का पहला मामला वर्ष 2016 में सरदारनगर क्षेत्र में मिला था। वह मरीज भी बिहार के सिवान जिले से आया था। प्रोटोकॉल के मुताबिक संबंधित आबादी को वर्ष 2017, 2018 और 2019 में दवा का छिड़काव करवा कर प्रतिरक्षित किया गया। कालाजार का प्रकोप मुख्यतया कुशीनगर और देवरिया जनपद में पाया जाता है जो बिहार से सटे जिले हैं, लेकिन कुछ प्रवासी मामले जिले में भी आ जाते हैं। लिहाजा संबंधित इलाकों में एहतियातन छिड़काव करवाया जाता है। 

जिले के पिपरौली ब्लॉक के भौवापार गांव में वर्ष 2019 में कालाजार का प्रवासी मरीज सामने आया था, भौवापार का मरीज कुशीनगर जिले से आया प्रवासी था। इस गांव में दो वर्ष के भीतर तीन चक्र का छिड़काव कराया जा चुका है। गांव के कुल 1784 घरों में छिड़काव किया गया। कालाजार रोधी कार्यक्रम में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के जोनल कोआर्डिनेटर डॉ. सागर घोड़ेकर तकनीकी सहयोग कर रहे हैं।

कालाजार को जानिये

जिला मलेरिया अधिकारी ने बताया कालाजार बालू मक्खी से फैलने वाली बीमारी है। यह मक्खी नमी वाले स्थानों पर अंधेरे में पाई जाती है। यह तीन से छह फीट ऊंचाई तक ही उड़ पाती है। इसके काटने के बाद मरीज बीमार हो जाता है। उसे बुखार होता है जो रुक-रुक कर चढ़ता-उतरता है। लक्षण दिखने पर मरीज को चिकित्सक को दिखाना चाहिए। इस बीमारी में मरीज का पेट फूल जाता है, भूख कम लगती है और शरीर पर काला चकत्ता पड़ जाता है।

कार्यशाला के प्रमुख संदेश

कालाजार मरीज की जितनी जल्दी पहचान होती है उसके जीवन की रक्षा हो जाती है, अन्यथा इस बीमारी के इलाज में देरी से मृत्यु हो सकती है।

दस्तक के दौरान संभावित कालाजार मरीज मिलने पर दो दिन के भीतर आरके-39 जांच  होनी चाहिए।

संभावित मरीज मिलने के दो दिन के भीतर रैपिड रिस्पांस टीम (आरआरटी) या मलेरिया विभाग की टीम मौके पर पहुंच कर  आरके-39 जांच कर ले।

मरीज का ट्रिटमेंट एक दिन का होता है लेकिन इसकी लागत करीब एक लाख तक है। सरकारी अस्पताल में निःशुल्क इलाज है।

कालाजार की वाहक मक्खी जब मरीज को काटने के बाद स्वस्थ व्यक्ति को काटती है तो उसे भी कालाजार हो जाता है। इसलिए मरीज की शीघ्र पहचान और उपचार से बीमारी का प्रसार नहीं होता।

कालाजार से स्वस्थ हुए 10 फीसदी लोगों में पीकेडीएल (चमड़ी वाला कालाजार) देखा गया है। इसकी भी समय से पहचान आवश्यक है।

गोरखपुर जिले में इंतजाम

गोरखपुर जिले में कालाजार की दवा जिला अस्पताल में उपलब्ध है। आरके-39 जांच का किट जिला मलेरिया कार्यालय में उपलब्ध है। अगर बीआरडी मेडिकल कालेज में भी दवा की आवश्यकता होती है तो डब्ल्यूएचओ के सहयोग से वहां भिजवाया जाएगा।



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