कालाजार से बचाव के लिए होगा दूसरे चक्र का छिड़काव

रामकृष्ण पट्टू
गोरखपुर, जिले के पिपरौली ब्लॉक स्थित भौवापार गांव के करीब 2000 घरों में रहने वाली 10000 की आबादी को कालाजार की बीमारी से सुरक्षित किया जाएगा । इस कार्य में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और स्वयंसेवी संगठन पाथ भी तकनीकी सहयोग देंगे। इस संबंध में जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. अंगद सिंह की मौजूदगी में छिड़कावकर्मियों को पिपरौली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) पर मंगलवार को प्रशिक्षित किया गया । उन्होंने बताया कि 35 दिनों तक गांव में अभियान के तौर पर कालाजार की जनक बलुई मक्खी निरोधक दवा का छिड़काव किया जाएगा । यह अभियान 20 अगस्त से प्रस्तावित है । वर्ष 2019 में इस गांव में  कालाजार का प्रवासी मरीज सामने आया था, इसलिए एहतियातन यहां लगातार तीन वर्षों तक दवा का छिड़काव होगा।

जिला मलेरिया अधिकारी ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभाग करने के अलावा सीएचसी के लैब और मिनी पीकू का निरीक्षण भी किया। उन्होंने सभी संबंधित लोगों को गुणवत्ता बनाए रखने का दिशा-निर्देश दिया। जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. अंगद सिंह, प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ. निरंकेश्वर राय, डब्ल्यूएचओ कोआर्डिनेटर डॉ. सागर और पाथ के प्रोग्राम मैनेजर डॉ. ज्ञान ने संबंधित लोगों को प्रशिक्षित किया । सभी प्रशिक्षुओं को बताया गया है कि शारीरिक दूरी का पालन करते हुए मॉस्क एवं ग्लब्स लगा कर छिड़काव कार्य सम्पन्न करेंगे। बालू मक्खी जमीन से छह फीट की ऊंचाई तक उड़ सकती हैं। ऐसे में सभी प्रशिक्षुओं को बताया गया है कि दवा का छिड़काव घर के अंदर तथा बाहर छह फीट तक कराना है। छिड़काव के बाद तीन माह तक छिड़काव स्थल पर पुताई नहीं होनी चाहिए।
इस अवसर पर सहायक मलेरिया अधिकारी राजेश चौबे,  चंद्र प्रकाश मिश्रा, मलेरिया विभाग से राहुल सिंह,  प्रभात रंजन सिंह, बेसिक हेल्थ वर्कर हेमंत कुमार, सुजीत कुमार, सावित्री सिंह, आशा कार्यकर्ता मोना देवी, शांति देवी, सुमन देवी और उषा पांडेय ने प्रशिक्षण में प्रतिभाग किया।कालाजार के लक्षण
जिला मलेरिया अधिकारी ने बताया कि  कालाजार बालू मक्खी से फैलने वाली बीमारी है। यह मक्खी नमी वाले स्थानों पर अंधेरे में पाई जाती है। यह तीन से छह फीट ऊंचाई तक ही उड़ पाती है। इसके काटने के बाद मरीज बीमार हो जाता है। उसे बुखार होता है और रुक-रुक कर बुखार चढ़ता-उतरता है। लक्षण दिखने पर मरीज को चिकित्सक को दिखाना चाहिए। इस बीमारी में मरीज का पेट फूल जाता है। भूख कम लगती है। शरीर पर काला चकत्ता पड़ जाता है।
वर्ष 2016 में भी मिला  था मामला
जिला मलेरिया अधिकारी ने बताया कि कालाजार का एक मामला वर्ष 2016 में सरदारनगर क्षेत्र में निकला था। वह मरीज भी  बिहार के सिवान जिले से यहाँ आया था। प्रोटोकॉल के मुताबिक संबंधित आबादी को वर्ष 2017, 2018 और 2019 में दवा का छिड़काव करवा कर प्रतिरक्षित किया गया। कालाजार का प्रकोप मुख्य रूप से  कुशीनगर और देवरिया जनपद में पाया जाता है जो बिहार से सटे जिले हैं, लेकिन कुछ प्रवासी मामले जिले में भी आ जाते हैं। लिहाजा संबंधित इलाकों में एहतियातन छिड़काव करवाया जाता है। भौवापार का मरीज कुशीनगर जिले से आया प्रवासी मरीज था।

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